#जीवन संवाद: आत्मा के माली!

हम छोटे-छोटे गमलों की देखभाल के लिए भी माली की सेवाएं लेते हैं. वह तिथियों पर आकर उनकी खोज खबर लेता रहता है. गांव में माली नहीं होते, वहां पर्यावरण से थोड़ी सहजता होती है. मित्रता होती है. लेकिन शहरों में हर छोटे-बड़े फ्लैट में मालियों की सेवाएं ली जाती हैं. यह उदाहरण इसलिए चुना गया कि हमने अपने छोटे से छोटे कामकाज के लिए सलाहकार और विशेषज्ञ नियुक्त किए हुए हैं. बस आत्मा और मन की ओर से हम सुरक्षित दूरी बनाए रखते हैं.

यही कारण है कि भारतीयों का मानसिक स्वास्थ्य बहुत तेजी से 'खराब' से 'गंभीर' की श्रेणी में जा रहा है. खराब को तो मिलजुल कर किसी तरह ठीक किया जा सकता है लेकिन गंभीर को बहुत अधिक सुरक्षित देखभाल की आवश्यकता होती है. बहुत पुरानी बात नहीं है, जब माता-पिता, रिश्तेदार और बड़ी संख्या में दोस्त हमारी आत्मा के माली का काम किया करते थे. मन की सफाई के साथ उसकी छंटाई, देखभाल करते थे. धीरे-धीरे अपेक्षा की खरपतवार ने अपनों से हमारी दूरी कई गुना बढ़ा दी!

कुछ दिन पहले उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से सटे सिंधौली और सीतापुर में बच्चों के साथ संवाद का अवसर मिला. यह देखकर प्रसन्नता हुई कि बच्चे अब खुलकर डिप्रेशन, निराशा और आत्महत्या जैसे प्रश्नों पर संवाद कर रहे हैं. चिंता की बात यह है कि शहर से सुरक्षित माने जाने वाले कस्बे और गांव में भी यह संकट हमारी समझ से कहीं अधिक तेजी से बढ़ रहा है. छोटे-छोटे बच्चे पूछ रहे हैं जीवन में इतना संघर्ष क्यों है. बच्चे पूछ रहे हैं कम नंबर आने पर भी जीवन में कुछ उद्देश्य बाकी रह जाता है? उनकी घबराहट आत्मा तक पहुंच जाती है, जब उनकी ओर दुलार, प्रेम और स्नेह की सप्लाई बाधित होने लगती है.